आंदोलन की हदें पार, रंडी नाचे बीच बाजार

तमिलनाडु के किसानों को मूत्र पीता देखकर बिलकुल भी असहज नहीं हुआ....क्योंकि देश की राजनीति का नया चित्रण कुछ इसी तर्ज पर हुआ था....पहले किन्नर पेटीकोट उठाते थे....तो हरे पटके में लिपटे इन किसानों ने सड़क पर नंगा नाच किया तो नया क्या है....इजाज़त पहले ही दे दी गई थी.....रही बात सरकार की तो....मोदी सरकार में अर्थव्यवस्था हवाई जहाज बन गई है....प्रवक्ताओं के जरिए रोज टेकऑफ करती है...और विपक्ष फिर लैंड करा देता है। लेकिन बनती बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बीच किसान मूत्र पी रहे हैं...ये गौ मूत्र नहीं है...धार इंसान की थी और सरकार निशाने पर....


लोकतंंत्र के चौथे स्तंभ ने कैमरा जूम कर करके इंसान की पेशाब का पीलापन दिखाया....और उस पीलेपन में गोता लगाती विपक्ष की राजनीति को कॉन्सेप्ट कुमार ने अपने अंदाज में उस काले पर्दे के पीछे गायब कर दिया...जिसमें राष्ट्रवाद की परिभाषा कभी उकेरी गई थी....सब अपने अपने लिहाज से दिखा रहे हैं...जितना जो खरीदता है...उतना दिखाया जाता है...बाकी को शब्द की जुगाली करके लिक्खाड़ टट्टी की तरह हग देते हैं...देश विकास की ओर बढ़े न बढ़े..लेकिन जिन लोगों ने अभी शू-शू पी है और अब पखाने पर भी ट्राई मारने की योजना हो सकती है...वो इंसान शब्द को हांशिए पर जरूर धकेलने में कामयाब हो रहे हैं....बधाई हो इंसान अपनी टट्टी से कंडे बनाने की तैयारी में है...आंदोलन के तरीके में देखिए कितनी तब्दीली हुई है...और उसका तरीका सुझाया है जिम्मेवार विचारधाराओं से ग्रसित मीडिया ने....मीडिया नचाए बीच बाजार

आपका आत्मीय

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