यकीन मानिए आप बेहतर हैं पर...



(किसी व्यक्ति विशेष पर पत्र आधारित नहीं है...कृपया कोई भी अन्यथा न ले गर लेता है तो इसे महज एक संयोग कहा जाएगा)

माननीय,

जो लाइनों पर लाइन लिखकर बौरा जाते हैं....खुद को विशेष के तमगे के साथ जोड़कर सारी सहूलियतों का हकदार मानने लगते हैं.....आपके लिए एक विशेष पत्र बाया मस्तिष्क से होते हुए उंगलियो से आपकी सेर सेर भर की दुकानों में चिपका रहा हूं....गर जल उठे तो राख बनने से पहले मान लीजिएगा कि आपका ताजमहल यमुना के प्रदूषण से पहले आपके अहम् की चपेट में आकर पीला, करिया ( काला) पड़ गया है...शब्दों की चवन्नी अठन्नी बटोरते समय आप शायद यशवंत सिंह, राहत इंदौरी, मुनव्वर राना, जॉन एलिया, कुमार विश्वास, ग़ालिब सरीखे कीमती सिक्कों को भूल जाया करते हैं...वो हौले से खनकते थे...क्योंकि गर ज्यादा खनके होते तो उनका लब्बोलुबाब काफी पहले ही सिमटता और घिस घिसकर मिट जाता....आज पहचान की बजाए अंजान होते...लेकिन आप अंजान होकर भी पहचनवाने की कोशिश कर रहे हैंं। प्रयास सराहनीय है...होना भी चाहिए क्योंकि प्रयासरत् इंसान और पहाड़ में चढ़ने के प्रयत्न में जुटी चींटी अच्छी लगती है...लेकिन जहां अहम् आया वहां यकीन मान लीजिए किस्सा एकदम उलट होकर कछुआ और खरगोश वाला हो जाता है..कमाल मत बनिए, कमाल करने की कोशिश कीजिए...मैं भी इसी दिशा में प्रयासरत् हूं...रवीश को पेस्ट मत कीजिए....खुद को बेहतर बनाईये ताकि आप पेस्ट की श्रंखला से अलग नजर आ सकें....रही बात चमकने और चमकाने की....तो निष्पक्षता का घोल बनाते समय आप उसकी कड़वाहट को शायद याद करते हैं....और एक पक्ष पकड़कर निष्पक्षता के घोल को अपने दिमाग की नाली से हौले से विष्ठा के साथ साथ हचक कर निकालकर सुकूनकी सांस ले लेते हैं...गालियों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त में बीजेपी को शामिल करना मुझे वाकई संतुष्ट करता है...क्योंकि ये दर्शाता है कि आप कितनी शिद्दत से अपने पेशे को धोखा दे रहे हैं...कश्मीर के पत्थरबाजों के सामने एक बार अपनी दुकान रखिएगा...फिर देखिएगा कि आपके वो कितने सगे हैं....सुकमा के बुरकापाल और चिंतागुफा में नक्सली हमले में मारे गए 26 जवानों के परिजनों से कहिएगा कि पैलेट गन गलत है...गन की गहराई गनगना कर किस गहराई में जाएगी सोच नहीं पाएंगे...बहरहाल सोचिएगा ज़रूर...आपका हितैषी हूं।

आपका आत्मीय

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