पहली किताब के लिए

तुम्हारे ख़त ख़त्म हो गए हैं क्या ? या तुम्हारी नज़रों में मैं....मेरे किस्से अधूरे पड़े रहते हैं और तुम जवाब तक नहीं देती...डर है शायद, खो देने का...किसी रोज ख़तों की तरह मैं न ख़त्म हो जाऊँ...पर, तुम रोना नहीं।। किताबों में मिलेंगे, तारीखों में मिलेंगे।

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